यही सपना है इस महान ऋषि का!
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उत्सव बने सभी का जीवन ओर ज़िन्दगी गुनगुनाये
न हो गम की परछाई जहाँ, चाहे मौत भी झूम-झूम आये
न लड़े जहाँ प्रतिमा से प्रतिमा, कभी न टूटे हृदय किसी का
हर घट में बजे प्रेम की वीणा, यही सपना है इस महान ऋषि का!
दुर्विचारों के दुर्दिन लद जायें, सुविचारों के शुभ दिन आ जायें
कलुषिता मन की खत्म हो जब, हर जीवन शान्ति से लहलहाये
दूसरों के दुःख का देखकर जब, पिघले मन हर किसी का
हर लब से निकले शहद सी वाणी, यही सपना है इस महान ऋषि का!
ईर्ष्या घृणा को दे तिलांजलि, मन सद्भावना का आँगन बन जाये
मेरे तेरे का अंत हो जब, एकता की स्वर लहरी बह आये
परिवार एक हो समाज एक हो विश्व एक हो, बंधुत्व में भीगे प्राण हर एक का
विश्व शांन्ति का बाण लक्ष्य को भेदे, यही सपना है इस महान ऋषि का!
-स्वामी ज्ञानेशानंद
it is very good
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