चाँद भी हैरान है, देख धरती पे ऐसा नूर!
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चाँद भी हैरान है, देख धरती पे ऐसा नूर!
सूरज का घमंड भी, हो गया चूर-चूर!
तारे जिससे मिलने को हो गए मजबूर!
लज्जित होकर हर पुष्प झुका, जब पाया ऐसा सुरूर!
फटा कलेजा अंबर का, जब पाया खुद से दूर!
धरती पावन हो गई पल में, चूमे चरण भरपूर!
चलती पवन भी झूम गई, नज़र में आया जब वो हूर!
गंगा ने भी चरण पखारे, न रह पायी दूर!
ढूँढ सका न कोई, आशु बाबा तुझसा नूर!
नमन तुझे ऐ मेरे मालिक, सारी मलकियत के हुजूर!
---ज्योति, पंजाब
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