इस धृष्टता के लिए मुझे क्षमा करना!
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जानता हूँ तेरे चरणों की धूलि बनने के भी योग्य नहीं हूँ
फिर भी तेरे विराट मस्तक का छूना चाहता हूँ
मुझे क्षमा करना!
मेरी बंद पलकों में कामनाओं के तूफ़ान है
फिर भी इन पलकों को तेरे कदमों तले बिछाना चाहता हूँ
मुझे क्षमा करना।
मेरा हृदय मलीनता की कितनी परतों में दबा है
फिर भी इस हृदय में तुझे बैठाना चाहता हूँ
मुझे क्षमा करना।
तू विशाल सागर है, मैं जल की नन्हीं सी धारा
दौड़ कर तेरे विशाल वक्ष में समा जाना चाहता हूँ
मुझे क्षमा करना।
तू अनंत आकाश है, अमृत की अनंत धाराओं का स्रोत
मैं एक बंज़र बाँझ भूमि, तेरी धाराओं से सिक्त हो जाना चाहता हूँ
मुझे क्षमा करना।
माटी के एक नन्हे से कण ने विराट गगन का छूने का स्वप्न देखा है!
छोटे से दीये ने अनुपम सूर्य को अपना लक्ष्य मान लिया है!
लघु वासना ने परम-कामना की मनोकामना कर डाली है!
अपनी क्षुद्ता से परीचित हूँ!
पर तुम्हारी विराटता पर मुग्ध हूँ!
तुम्हें देखा है, तुम्हें चाहा है!
कदम बढ़ा दिए हैं तुम्हारी तरफ,
मुझे क्षमा करना।
--- सुश्री श्यामा भारती
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