Tuesday, December 29, 2009

क्यों नहीं आये इस देस लाडो?

मै भारत हूँ। वह देश , जिसके तिरंगे आंचल तले सदियों से नन्ही-नन्ही कंज़काओं क़ी पूजा होती रही है। जिसकी आबो-हवा में, असंख्य छोटी बच्चियो कि देवी-शक्तियों के रूप में आराधना हुई है। सच, क्या दौर था! अशीषों में झूला करता था मै! पर आज लगता हे, मेरा वंश श्रापित हो चला है। मेरे आँगन क़ी शोभा, मेरी बेटियाँ, प्यारी परियाँ आज खोती जा रही हे। लड़का-लड़की का अनुपात असंतुलित हो गया हे। देखिये, ये कडवे ब्योरे! 1000 लड़कों कि तुलना में, पंजाब में केवल 798 लड़कियाँ ही रही गई है; हिमाचल प्रदेश में 800; राजस्थान में 600। क्यों मेरी धरती आज बेटियो से फलफूल नहीं पा रही ? जानना चाहेंगे सच? तो चले ,मेरे साथ, मेरे एक छोटे से गावँ में…।
गावँ जैसीपुर, हरियाणा…

कुक्डू-कू…कुक्डू-कू…

रामवती के आँगन ने अंगड़ाई ली। सोनू और सोनम ( भाई-बहन, जो छुट्टी मनाने शहर से अपनी दादी रामवती के गाँव आए थे)। भैसों का महिष-नाद इतना जोशीला, इतना जोरदार था कि सोनू हडबडा कर अपनी चारपाई से नीचे जा गिरा। इतने में, एक गुलाबी पर्चा लहराता हुआ भूंसे के खुड में जा गिरा।
सोनू ने अनमना सा होकर पर्चा उठाया और पड़ने लगा। वह चीखता हुआ बोला-‘वाओ दीदी ! देखो इधर ! What a deal- 500 देकर 5 लाख बचाओ ! यह सुनते है, सोनम पर्चे कि तरफ लपकी। एक ही साँस में उसे पूरा बांच गई। पर्चे की आखिरी पंक्ति थी- ‘सौजन्य से- चौधरी धनप्रकाश क्लिनिक’। सोनम कि भौहें गुँथ गई। वह रुक-रुक कर कहने लगी- If Iam not wrong….इसी क्लिनिक में तो कल चाची को लेकर दादी और चाचा गए थे !!’
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‘फेर छोरी… फेर छोरी… बेर-बेर छोरी !’ वीरेन्द्र चिंघाड़ता हुआ आँगन में दाखिल हुआ।
वीरेन्द्र (पगड़ी मसोसता हुआ)- के बताऊ अम्मा ? बाबुराम, वो क्म्पाउंड़र टकरा गया। बात-बात में, मैने उससे रिपोर्ट की पूछ ली। ते बस, फिर ते मन्ने काठ मार गया।
रामवती- ऐ छोरे, के जलेबी सी बनान लाग रहा, सीधी-सीधी बात कर।
वीरेन्द्र- के सीधी ? सब उलटा हो लिया, अम्मा। तैंने याद है, जिब कमला कि मसीन (Sonography/Ultra Sound/Biopsy/Scan test) से जाँच हो रही थी, तो वो डोक्टर तपाक से बोल पड़ा था- ‘जय माता दी’ हम तब न समझे। रामवती- कें न समझे ? वीरेन्द्र - री अम्मा, बाबूराम बता रहा था की ‘जय माता दी’ माने लड़की। और अगर डॉक्टर ‘जय बाल-गोपाल’ बोलता, तो उसका माने ‘लड़का’ होता।

( चूंकी लिंग प्रकाशित करना गैर-क़ानूनी है, इसलिए आज के गर्भ जाँच केन्द्रो में कुछ कूट कोड वर्ड्स माने सांकेतिक शब्दो का प्रचलन है। जैसे, अगर डॉक्टर कहे कि रिपोर्ट monday को मिलेगी, तो इसका मतलब की लड़का होगा। कारण की ‘monday’ का शुरुआती सब्द है ‘m’ यानी ‘male’। अगर डोक्टर बोले की रिपोर्ट ‘Friday’ को मिलेगी, तो समझो ‘लड़की’ होगी. क्योकि ‘F’ यानि ‘Female’.)

रामवती-(माथा ठोंकते हुई)- नासपिटे तेरी घरवाली का ! इस कलमूँही की कोख में तो छोरे जनन का बीज ही कोणा !

वीरेन्द्र - अम्मा, तू कती न घबरा। में बाबुराम से सांठ-गांठ कर आया हु। वो डॉक्टर से मिलकर ‘बच्चे के ख़राब’ होने कि एक फर्जी रिपोर्ट बनवा देगा।

(चूंकि गर्भपात कानूनन अपराध है, इसलिए अकसर जाँच केन्द्रो में भुर्ण को विकृत, रोग ग्रस्त (Septic) अथवा मरा हुआ व माँ की जान को खतरा दिखा कर फर्जी रिपोर्ट्स बनाई जाती है. फिर इन्ही के आधार पर भ्रूण को मार दिया जाता है।)

वीरेन्द्र -...बस फिर ते चटपट से 500 रूपी देकर सफाई-तफाई (abortion/foetus termination) करा डालेंगे।
यहे सुनते ही रामवती के तेवर तन गए। त्यौरियाँ चढाकर वह गरजती हुई बोली- ‘अरे ! कबाड़ की सफाई की खातिर 500 रूपी भी भला क्यों फूँके ? होने दे पैदा छोरी ने।
(आप हैरान होंगे, पर यह एक बेरहम सत्य है। देश में आज भी ऐसे बहुत से कस्बे है, जहाँ कली सी कोमल नवजात बचिचयो को खाट के पाँवो तले मसल दिया जाता है। कही उनके हलक तले पिघला हुआ कांच उड़ेल देते है। कही-कही पर उन्हे दुध से लबालब भरी कढ़ाहियों में डुबो डालते है।)

वीरेन्द्र - अरी अम्मा… खर-पतवार नै जितनी जल्दी उखाड़ फेको, उतना ही बढिया सै।

सोनू-सोनम, इतनी देर से, वही आँगन में ठगे से खड़े थे।

सोनम- ये..ये…क्या है…ये सब क्या… चाचू, खरपतवार कि बात ! ये कोई आपके खेत-खलियन नहीं, एक जीती-जागती माँ की कोख है। ये एक नन्ही सी जान है। आपकी अपनी बेटी है….और दादी, खाट के पाव…!!!

अम्मा सिर का पल्लू सँभालते हुई तमक कर बोली-‘बस ! चुप कर री छोरी ! तन्नै के बेरा ? अगर आज उसे ख़त के पॉव तले न कुचला, तो कल को म्हारी पगड़ी लोगो के पॉव में रुलती फिरेगी। एक तो पालो-पोसो, पेट काट-काट के दहेज़ जोड़ो, और फिर किसी गैर के खूटे से छोरी नै बांध दो। हमसे न सरे यो झमेला।

सोनम- झमेला ! अरे अम्मा, झमेला वो अजन्मी बच्ची नहीं ! बल्कि झमेला तो समाज के सिस्टम में है। उसकी सड़ी-गली सोच में है, जिसे ढोने वालो का जमीर बेटियो को खरीदते-बेचते, उनका सौदा करते हुई उन्हे धिक्कारता नहीं !

(गाँव के विद्यालय के हैड़मास्टर का आँगन में प्रवेश…)
मास्टर जी- अम्मा जी, राम-राम…
‘प्रणाम मास्टर जी, प्रणाम’, यहे कहते हुए वीरेन्द्र ने बुजुर्ग हैड़मास्टर जी के पाँव छुए।

मास्टर जी- दूधो नहाओ, पूतो फलो।

सोनम- (प्रणाम करते हुए) – मास्टर जी, एक बात पूछूं ? आपने यही क्यों कहा कि ‘पूतो फलो’? सोनम- पूतो या बेटो के होने का ही आशीर्वाद क्यों? क्या बेटिया प्रसाद नहीं ?

अम्मा जी को चुभन महसूस हुई। तिलमिलाती हुई बोली- इब मेरी एक सीधी बात का जवाब दो। छोरा न हुआ, तो वंश कैसे चलेगा ? छोरा ही तो चिता ने अग्नि देगा…आगे सराद-सरूद (श्राद्ध) करके हमें पार लगेगा।’ अम्मा जी ने मानो अपनी रुढिग्रस्त सोच के बर्तन को छलका दिया था।

सोनम- आपकी बहु, किसी कि बेटी ही तो है! इस तरह देखा जाए तो बेटी भी तो सहारा हुई न ! फिर बेटा ही बुढ़ापे का सहारा कैसे ?

मास्टर जी भी समर्थन करते हुए बोले-“बहुत बढिया, बिटिया।” भवसागर पार किसी के कंधे पर चढ़कर नहीं किया जा सकता। उसके लिए अपने ही शुभ-कर्मो, ध्यान-साधना की नौका तैयार करनी होती है। शास्त्रो में ‘पुत्र’ किसे कहा गया ? पुनाति इति पुत्र:- जो माता-पिता को ब्रह्मज्ञान से जोड़े, पुण्ये-कर्मो के लिए प्रेरित करे, वही पुत्र है। यह ‘पुत्र’ शब्द दरअसल एक कसौटी है। जो भी इस पर खरा उतरे, बेटा या बेटी, वही मुक्ति या मोक्षदायक है। सोनम तर्क कि डोर आगे खीचते हुए बोली- ‘ और फिर अम्मा जी, बेटे की लालसा में, एक अजन्मी बच्ची को गर्भ में ही मार कर, एक निरीह जीव कि हत्या करके, आप कौन से नर्को से त्राण पा लेगी ?’

शास्त्रो का यह श्राप नुकीले भाले की तरह कालेजों को भेद गया। इतनी देर से मौन खड़ा वीरेन्द्र बौखला उठा। दहाड़ता हुआ बोला-‘बस, घणा काल्स (क्लेश) कर दिया सै ! इब चुप हो जाओ सरे ! में कहू, सारे फसाद कि जड़ ये करमजली कमला से। अब सोनू ने आगे बढकर मोर्चा संभाला- ‘Excuse me , चाचू… ये कैसी दकियानूसी बाते कर रहे है आप ? इस सबमे चाची का क्या दोष ? आपकी जानकारी के लिए बता दू, कोख में पल रहा बीज लड़का होगा या लड़की- इसकी जिममेदारी बाप कि होती है। माँ की नहीं !’
चाचा (तमक कर)- यो कैसी बात कर दी रे छोरे ? मनहूस अंगीठी तै इसकी और रोटी जलाने का दोस म्हारे सर !

सोनू- उफ ! में आपको सांइटिफिकली याने वैज्ञानिक तौर पार समझता हू। आप बस समझने की कोशिश करना, प्लीज़। बचे के जन्म के लिए दोनों माता-पिता के बीज (ovam & sperm) आपस में मिलते है। विज्ञानं कहता है, माँ के बीज में x, x नाम के दो क्रोमोज़ोमस याने… अ…अ…आप समझ लो की दो धागे होते है और पिता के बीज में x, y टाइप के धागे होते है। आगे चलकर, एक धागा माँ का और एक धागा पिता का आपस में जुड़ते ही
इन्हें जुड़े हुए धागों सै बचे का निर्माण होता है। अगर x और y धागे जुड़ते है, तो लड़का बनता है। अगर x और x धागे जुड़ते है, तो लड़की बनती है। अब चाचू, आप बताओ की माँ हर बार कौन सा धागा देती है ?

वीरेन्द्र-और दे ही के सके सै ? है ही ओउसके धोरे x, x… तो, x ही देगी।

सोनू- और पिता ?

वीरेन्द्र (मुछो को ताब देता हुआ)- वो तो… वो तो कोई भी दे सके सै। X भी Y भी।

सोनू- तो चाचू जी, आपने ‘x’ क्यों दिया, ‘y’ क्यों नहीं ? ‘Y’ दे देते, तो लड़का हो जाता।

वीरेन्द्र - अबे, यो में…में… मेरे हाथ में कोनी ? इसमें मै के कर सकू ?

सोनू- तो इसमें चाची के कर सके ? फिर चाची सारे फसाद की जड़ कैसी ?

आंगन में सन्नाटा पसर गया था। सिर्फ दिलो की धड़कने सुनाई दे रही थी। इनमे से सबसे तेज धड़क रहा था- कमला का दिल ! एक माँ का दिल ! अब आखिरी मूक सवाल था, आधे-अधूरे, अधपके अंगो वाली भुर्ण कन्या का- ‘क्या मै इस आँगन में किलकारियाँ मार पाऊँगी? या फिर- भिनभिनाती मक्खियाँ, कुलबुलाते कीड़े, सूंघते कुत्तो के बीच, कचरेदान के गर्भ में, कीचड़ से लथपथ, मै टूटी बिखरी पड़ी पाऊँगी ?’
आज समाज के आँगन में भी असंख्य अजन्मी बचिया यही सवाल उठा रही है। उत्तर हमें ही देना होगा !

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