Tuesday, December 29, 2009

वैदिक काल के चमत्कारिक आपॅरेशन

यह वैदिक युग की बात है। अश्विनी कुमार दो भाईयों ने अनेक विद्याएँ अर्जित कर ली थीं। इस कारण तीनों लोकों में उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा हो रही थी। एक दिन उन्होंने मधुविद्या को भी प्राप्त करने का निश्चय किया। जब देवराज इन्द्र को उनके इस निर्णय का पता चला, तो वह अत्यंत व्याकुल हो उठा। उसने त्रिलोक में एलान कर दिया कि कोई भी अश्विनी कुमारो को मधुविद्या प्रदान न करे। यदि किसी ने ऐसा किया, तो उसका शीश धड़ से अलग कर दिया जायेगा। उस समय दधीची निर्भीक ब्रह्मनिष्ठ ऋषियों में गिने जाते थे। इसीलिए दोनों कुमार इन्हीं के आश्रम में पहुँचे। ऋषि के सम्मुख होकर दोनों ने हाथ जोड़कर मधुविद्या प्रदान करने की प्रार्थना की। साथ ही उन्हें इन्द्र की घोषणा के विषय में बताया ऋषि दधीची ने कहा - जिज्ञासुओं को निस्वार्थी और निर्भय होकर विद्या प्रदान करना ऋषि का कर्त्तव्य है, जिसका मैं पालन करूँगा। फिर चाहे इस कर्त्तव्य पालन में मेरे प्राण ही क्यों न चले जाएँ।’ 'नहीं ऋषिवर, इस समस्या से उबरने एक उक्ति हमारे पास। यदि आप स्वीकार करे तो…’ तुरंत कुमारों ने कहा। उन्होंने भी उसके लिए स्वीकृति दे दी। तत्पश्चात दोनों कुमारों ने ऋषि दधिची का सर काट कर उसके स्थान पर एक घोड़े का सर लगा दिया। कथा बताती है कि दधिची ने इसी अश्व-शीश में दोनों कुमारों को मधुविद्या प्रदान की। जैसे ही इन्द्र को ये पता चला, तो ब्रह्म्श्री उसके कोप का भाजन बने। उसने तत्शन अपने दिव्यास्त्र द्वारा उन पर अमोघ प्रहार किया। ऋषि के धड पर लगा घोड़े का सिर खण्ड - खण्ड होकर धरा पर आ गिरा। इन्द्र तो अपनी कोपाग्नि बरसा कर चला गया। अब अश्विनी कुमारो ने अपनी युक्ति के अगले चरण को अंजाम दिया। ऋषि दधिची के सुरक्षित रहे हुए शीश को पहले की ही भांति उनके धड से संयुक्त कर दिया।

यह थी एक पौराणिक कथा। इससे पढ़कर आपकी क्या प्रतिक्रिया रही? निःसंदेह आपमें से अधिकाँश को तो यह मनोरचित जगत कि एक कपोल कथा लगी होगी। पर हम आपको बताना चाहेंगे कि यह कथा मनघडंत नहीं, अपितु वैदिक कालीन वैज्ञानिकता को दर्शाती एक सत्य घटना है। उस समय कि विकसित शल्य चिकित्सा पर प्रकाश डालता एक अनुपम उदाहरण है। वस्तुतः अश्विनी कुमार उच्चकोटि के सर्जन थे।

वैदिक युग के इस चमत्कार को वर्तमान वैज्ञानिक शैली में Head transplantation (शीश प्रत्यारोपण) कहा जा सकता है। इस प्रकार की शल्य क्रिया के इक-दो नहीं,कई उदहारण वेद-पुरानो में मिल जाते हैं। पर आज यदि यह कर पाना हमे अंधविश्वास जनित या हवाई लगता है, तो इसका मात्र एक ही कारण है। वह है-आधुनिक विज्ञान की अपरिपक्वता! अर्थार्त वर्तमान शल्य चिकित्सा अभी उतनी विकसित नहीं हो पाई है जितना वैदिक काल में थी। शीश प्रत्यारोपण जैसी जटिल सर्जरी अभी दूर दूर तक हमारे जेहन में भी नहीं है।

केवल प्रत्यारोपण विधि ही नहीं, वैदिक युग में ऐसी अनेको ही उत्कृष्ट शल्य क्रियाएं की गयी थी। ये क्रियाएं आज भी आधुनिक विज्ञान के उन्नत काल में, हमारे लिए चुनौती बनी हुई हैं। उधारंतः एक वृद्ध को पुनः युवा जैसा बना देना। आधुनिक शल्य विज्ञान भी कीमियागीरी, प्लास्टिक सर्जरी जैसी चिकित्सकिय युक्तियों के सहारे चेहरे की झुरियों को हटाने की भरसक कोशिश कर रहा है। लेकिन इन् सभी प्रयासों एवं प्रसाधनों के बावजूद भी हमारा चिर युवा रहने का सपना अभी तक सपना ही बना हुआ है। पर वैदिक युग की अति विकसित शल्य चिकित्सा ने इस स्वप्न को भी साकार कर दिखाया था। उस युग में एक ऋषि हुए हैं च्यवन। पौराणिक आख्यान है कि जब वे वृद्दावस्था की मार से अत्यंत जीर्ण शिर हो गए, तो उनकी युवा पत्नी सुकन्या ने अश्विनी कुमारो का आव्हाहन किया। उनसे प्रार्थना की कि वे उसके पति को पूर्ववत यौवन रूप प्रदान करें। ऋषि पत्नी के आग्रह पर अश्विनी कुमारो ने च्यवन ऋषि की सर्जरी की। ऋग्वेद में उल्लिखित है-‘ जुजुरुशो नासत्योत वव्रिं प्रामुन्च्तम द्रापीमिव च्यावानात’ अर्थार्त हे अश्वानो ! तुमने अति वृद्ध च्यवन ऋषि के शरीर से कवच उतार देने के समान बुढापे की चमड़ी या झुर्री उतार कर उन्हें पुंह तरुण बना दिया था । यही कारण है कि आज एक ऐसे स्वस्थ्य टोनिक का नाम’च्यवनप्राश’ रखा गया है, जिसके लिए प्रचलित है कि वह बढती उम्र के लोगो को भी यौवन की सी शक्ति देता है । है न अपूर्व वैज्ञानिकता! हैरत में डाल देने वाली! ओर कितने उदाहरण दें?

सुश्रुत संहिता जिसे एक प्रकार का उपवेद माना जाता है,वह तो अपने आप में शल्य विज्ञान की एक एन्साइ – क्लो - पीडिया ( विश्व कोष) है । इसमें पथरी, फूला, ट्यूमर , हर्निया, कान ,नाक आँख आदि ३०० ऑपरेशन और ४२ शल्य विधियों का विस्तृत वर्णन है । कैसे चिकित्सागृह (Hospitals) होने चाहिए, औजारों को किस प्रकार विसंक्रमित(Sterlization) कर सकते हैं, यहाँ तक कि एक चिकित्सक में क्या गुण होने चाहिए- इन् सब का भी अति उत्तम विश्लेषण इस संहिता में किया गया है ।

सच में वेद, ज्ञान का महासागर हैं । हमारे अस्तित्व का ऐसा कोन- सा पक्ष है जिसकी मीमांसा वेदों में नहीं मिलती । ये एक ज्ञानी भक्त के लिए भक्ति का सरोवर है, नीतिज्ञों के लिए नीतिग्रंथ, तो शोधार्थियों के लिए वैज्ञानिक सूत्रकोष है । यदि आज हम ‘ Back to Vedas ’ उक्ति को चरितार्थ कर ले, तो निःसंदेह सम्पूर्ण विश्व में एक युगान्तरकारी क्रांति आ सकती है । न केवल हमारा धार्मिक एवं व्यावहारिक जीवन परिष्कृत हो सकता है, बल्कि आधुनिक विज्ञान भी इससे एक नया प्रकाश प्राप्त कर सकता है ।

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