Tuesday, December 29, 2009

वाइ.पी.एस.एस. के ध्वजधारी- सुनो!

आज की दशा कैसी है? समूचा आकाश मानो कमान सी छाती तान कर शर-संधान पर तुला है। लहू- प्यासे बाणों से दसों दिशाओं को बेध रहा है। नीचे धरती भी बंजर पड़ी है। उसकी करें से अब प्रेम-सौहार्द की सुनहरी फसले नहीं उगती। कपट, भ्रष्टाचार, वैमनस्य की कंटीली झाड़ियाँ उसमे गाढ़ी जा रही हैं। मानवता झुलसी पडी है! उसके घायल कंठ से आह्वान ही टेर सुनती है- त्राहि माम- रक्षा करो! अब आप बोलो- कौन सुनेगा इस टेर को? कब तक आत्मा इतनी गहरी नींद सोएगी, कि करवट तक भी न बदलेगी? बोलो- कौन उत्तर देगा मानवता के इस आह्वान को?

उत्तर आप दे सकते हैं- नौजवान बच्चों- केवल आप! जब भी किसी युग ने परिवर्तन की उजली सुबह देखी है, तो उसमे बिखरी ज्योतिर्मय किरणें हमेशा युवा ही रहे हैं। नौजवानों, तुम ही नवयुग का द्वार हो! जो अपने संकल्प की कलम से विश्व का भाग्य रचता है। हर बुराई पर प्रलय-बाण बन टूट पड़ता है-हाँ, तुम ही वो हो! फिर नौजवानों, अब क्यों और किस गाढ़ी नींद में सोए हो? खुद से बहार निकलकर देखो-मानवता आँचल फैलाये तुम्हारे द्वारा पर खड़ी है! उसकी एक-एक आह का जवाब दो! फिर से एक मसीहा को अपनी भीतरी ज़मीन पर अवतार लेने दो! फ़रिश्ते को जिगर में पैदा होने दो! उठो, जागो, विश्व के विराट प्रांगण में पाँव धरो! अजेयी हुंकार से हर बुराई को ललकारो! उसकी आँखों में आँखें डाल कर उसे पिघला डालो! संगठित हो… और बस कुछ कर दिखाओ…शक्ति निःसंदेह तुम्हारे पास है…केवल ब्रह्म ज्ञान से उसे जागने का अवसर दो! कर्त्तव्य-क्षेत्र में उतरे युवाओं को गीता की टिप्स...

1. Choose the work/goal according to your nature & efficiency। श्रेयान्स्वधमो विगुणः परधमात्स्वनुष्ठितात । (१८/४७)
अपने स्वभाव के अनुकूल लक्ष्य को चुनो।

2. Work/goal suited to your nature & efficiency leads to perfection।(18/45)
अपने-अपने स्वाभाविक कर्म में रत मनुष्य सिध्दि को प्राप्त करता है अर्थात कार्य में पूर्णता व कुशलता पाता है।

3. Do not work with attachment।(2/47)
फलासक्ति से युक्त होकर कर्म मत करना। कारण?-

4. Attachment leads to total devastation or failure।(2/62,63)
फिर किस प्रकार अपने कर्त्तव्य- कर्म को करें?

5. Fixed in yoga, do thy actions/work। (2/48)
प्रभु से जुड़कर अपने कर्त्तव्य-कर्म का पालन करो। कारण??

6. A karmayogi crosses over all difficulties & attain success। (18/57,58)
मेरे परायण होकर, मुझमे सदा चित्त रखने वाला कर्मयोगी मेरे प्रसाद से सब संकटो को पार कर लेता है अर्थात पूर्ण सफलता को प्राप्त करता है।


1 comment:

  1. aapke gita ke tips ne itni mushkil baat to kitne aasani se samjhaya he. maine is ka print out nikaalkar apne table ke samne chipkaya hi nahi ise apne jivan me apnane ki koshish bhi kar rahi hu.

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